"एक देश, एक चुनाव: लोकतंत्र में बड़ा बदलाव ?

"एक देश, एक चुनाव: लोकतंत्र में बड़ा बदलाव?


भारत में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (वन नेशन, वन इलेक्शन) की अवधारणा वर्तमान समय में राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है। इस पहल का उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित करना है, जिससे चुनावी प्रक्रियाओं में समन्वय और संसाधनों की बचत हो सके। आइए, इस विषय को विस्तार से समझें।



इतिहास की झलक:

स्वतंत्रता के बाद, 1952 से 1967 तक, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। हालांकि, 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने और 1970 में लोकसभा के विघटन के कारण यह समन्वय टूट गया, जिसके बाद से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की आवश्यकता क्यों?

1. चुनावी खर्च में कमी: बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से खर्चों में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।


2. प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि: लगातार चुनावी आचार संहिता लागू होने से नीतिगत निर्णयों में रुकावट आती है। एक साथ चुनाव से प्रशासनिक कार्यों में निरंतरता बनी रहेगी।


3. मतदाता भागीदारी में वृद्धि: बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं में उदासीनता आ सकती है। एक साथ चुनाव से मतदाता उत्साह बढ़ेगा और मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी।


चुनौतियाँ और चिंताएँ:

1. संवैधानिक और कानूनी अड़चनें: इसके लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होंगे, जो एक जटिल प्रक्रिया है।


2. संघवाद पर प्रभाव: राज्यों की स्वायत्तता और क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान कम होने की आशंका है, जिससे संघीय ढांचे पर प्रभाव पड़ सकता है।


3. लॉजिस्टिक चुनौतियाँ: एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों, मतदान कर्मियों और ईवीएम की आवश्यकता होगी, जो एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती है।



वर्तमान परिदृश्य:

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को मंजूरी दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया गया है, जो इस पहल के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श कर रही है। 

17 दिसंबर 2024 को लोकसभा में संविधान (129वां संशोधन) विधेयक पेश किया गया, जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है। इस विधेयक के अनुसार, राष्ट्रपति लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को 'नियत तिथि' घोषित करेंगे, जिसके बाद सभी विधानसभाओं का कार्यकाल उसी तिथि के साथ संरेखित होगा। 

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ:

इस पहल पर राजनीतिक दलों की मिश्रित प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। कुछ दलों ने इसका समर्थन किया है, जबकि अन्य ने संघवाद और राज्यों की स्वायत्तता पर संभावित प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है और राज्यों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर सकता है। 



'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की अवधारणा के अपने लाभ और चुनौतियाँ हैं। यह पहल चुनावी प्रक्रियाओं में सुधार ला सकती है, लेकिन इसके सफल कार्यान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधनों, राजनीतिक सहमति और व्यापक तैयारी की आवश्यकता होगी। इस विषय पर विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श आवश्यक है, ताकि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को सुदृढ़ और समावेशी बनाया जा सके।

अधिक जानकारी के लिए, आप नीचे दिया link क्लिक करें  सकते हैं:
Join Telegram: click_Here

No comments